Friday 22 November 2013

क्या कभी आपने इस बात पर गौर किया................???

क्या कभी आपने इस बात पर गौर किया................???

November 22, 2013 at 10:37pm
क्या कभी आपने इस बात पर गौर किया................???

जब भी हमारा कोई जानकार या रिश्तेदार मर जाता है , और जब हम कभी ऐसे मौके पर उनके घर जाते हैं तो -----
केवल औरतें ही शोर मचा कर, चिल्ला -२ कर रोती हैं , मर्द बेचारा मुह लटका कर उदासा बैठ जाता है . किसी भी माहौल को गमहीन बनाने का ठेका सिर्फ औरतों ने ले रखा हैं .
क्या सिर्फ औरतों को ही किसी के मरने का गम होता है ................???
क्या पुरुष को किसी के मरने का कोई गम नहीं होता ...............???

उसकी हालत और भी खतरनाक है वो तो बेचारा रो भी नहीं सकता . और दर्द को ढ़ोता है .

समाज में ये परम्पराएं इसलिए बनाई गई क्यों कि मर्द कि भूमिका कठिन होती है ............??? और मुश्किल से मुश्किल हालातो में भी उसे परिवार कि जिम्मेदारी निभानी है . बच्चो कि फ़ीस से लेकर , माँ बाप कि दवाई, किसी कि शादी , किसी कि लोन कि किशत का जुगाड़, कभी गुजर भाता जमा करवाना, कभी झूठे दहेज़, बलात्कार, छेड़छाड़ी के केस का दर, झूठे केस का शोषण , परिवार कि और सामाजिक जिम्मेदारी से लेकर और बहुत कुछ करना पड़ता है एक पुरुष यानि एक पिता, पति , बेटे या भाई के रूप में .
इसीलिए उसे बचपन से ही दर्द को पीना सिखाया जाता है , और औरत को जिद करके, शोर करके , चिल्ला के या रोकर अपने दर्द को दिखाना .

आज के हालातों में कितना दर्द ले कर जी रहा है पुरुष .................उस बेचारे को मरने से बचाने के लिए................

........उस बेचारे को मरने से बचाने के लिए क्या आप अपने-२ घरो से निकलेंगे .....???
दिनांक- 05 दिसम्बर -2013
समय --- प्रातः 10:00 बजे
स्थान-- जंतर- मंतर नई दिल्ली

प्रयास हमारा .............सहयोग आपका ................फायदा सबका.

हिन्दू विवाह संपत्ति अधिनियम में संशोधन को रोकने के लिए संसद का घेराव . देश के सभी सम्मानित नागरिक और संस्थाएं सादर आमंत्रित .. Regard's
परिवार बचाओ ----देश बचाओ.... जनआन्दोलन....
Visit us at --http://parivarbachaodeshbachao.blogspot.in/
Facebook as--www.facebook.com/groups/parivarbachao/
Twitter as--https://twitter.com/ParivarBachao

Contact-- Manojj 09253323118/ 09910597896 ; Anupam 08447034601 ; Bansal Uncle 09811105587

No comments:

Post a Comment