Sunday, 1 September 2013

Election Time..................................

संसदीय इलेक्शन के नगाड़े पिटना शुरू हो गए हैं... जंगी ढोलों का कोलाहल सुनाई पड़ रहा है... कोई अति मुलायम कुनबा मिशन 2014 के लिए टोपी पहनकर मौलाना अज्ज़म की दुकान पर अपनी साइकिल में हवा भरवा रहा है... तो कोई दबा-कुचला महावत हथिनी की जन्मपत्री पंडित मिसिर जी को दिखा रहा है... कोई शातिर जेबकतरिन अपने दामाद से छिपाकर अपने लल्लू छोकरे को झाड़ू-पंजा लेकर ट्रेनिंग दे रही है... तो कोई कच्छ के रण से पकड़ कर आये जंगी सांड को भगवा झंडा दिखा-दिखा कर लड़ने के लिए जोश दिला रहा है... कोई साधू सांड के पैर अपने पंजे से छूकर आशीष मांग रहा है... लाल लंगोटे वाले कामरेड पहलवान भी हंसिया को हथौड़े से पीट-पीटकर धार बना रहे हैं... शिव जी की सेना के कलियुगी बैल भी अपने खुरों से मराठी धरती खोदे दाल रहे हैं... कुछ छुटभैय्ये पहलवान भी अपनी किस्मत आजमाने के लिए अंड-बंड दंड पेल रहे हैं... कुल मिलाकर यह मुई कुर्सी एक ऐसी कुतिया है जिसके लिए सारे राजनीतिक कुत्ते अवश्यम्भावी कुकुर-युद्ध में एक दूसरे को नोच खाने के लिए तैयार मुद्रा में हैं... कोई कुत्ता किसी दूसरे कुत्ते को वाकओवर देने को तैयार नहीं है...

मुश्किल अपुन जैसे आम वोटरों की है... इस कुकुर-युद्ध में आम जनता को इन्हीं कुत्तों में से किसी न किसी पर दांव लगाना है... मंहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, कालाधन, स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी विकास जैसे मुद्दे तो नेपथ्य में चले गए हैं... दरअसल इन मुद्दों पर सभी राजनीतिक दल एक समान अक्षम और निकम्मे हैं... अब मुद्दा जो संख्या के आधार पर थोक में वोट दिलाता है और कुर्सी पर चढ़ाता है वो है सेक्युलरिज्म और जातिवाद विरोधी एजेण्डा...

बाबा जी के संविधान में भी सेक्युलरिज्म और जातिविहीन समाज ही हमारे लोकतंत्र का आधार है... तो क्या कोई मित्र किसी ऐसे राजनीतिक दल का नाम बता सकता है जो वास्तव में सेक्युलर हो... अर्थात जो ना धार्मिक बहुसंख्यकों के नाम पर राजनीति करता हो और ना ही धार्मिक अल्पसंख्यकों के नाम पर... या फिर कोई ऐसा दल जो जातिगत आधार पर राजनीति न करता हो... अर्थात जो दलित, अति दलित, अगड़े, पिछड़े, अति पिछड़े वोटों की गणित के आधार पर ना चलता हो... या फिर किसी ऐसे राजनीतिक दल का नाम बताइये जिसके एजेण्डे में सिर्फ भारत और भारतीय हों... लोकतंत्र एक नाटक हो चला है और चुनाव एक छलावा... वोटर मेहरबान तो गधे भी बन जाते पहलवान...

No comments:

Post a Comment